kUALA LUMPPUR में चुना पत्थर की पहाड़ियों पर है प्रसिद्ध बाटू गुफा मंदिर, 140 फीट ऊंची है भगवान मुरुगन की प्रतिमा
सुमन सिंह
January 29, 2024 19:36
● 272 सतरंगी सीढ़ियों पर चढ़ कर बाटू गुफा मंदिर तक पहुंच सकते हैं, भगवान मुरुगन भगवान कार्तिकेय के रूप हैं
मलेशिया की राजधानी kUALA LUMPPUR में चूना पत्थर की पहाड़ियों पर प्राचीन बाटू गुफा आकर्षण का बड़ा केंद्र है जिसे देखने के लिए दुनियाभर से पर्यटक आते हैं।गुफा तक पहुंचने के लिए पहाड़ी पर 272 सतरंगी सीढियां है जिससे गुजर कर आप गुफा तक पहुंच सकते हैं।पहाड़ी के नीचे मंदिर परिसर में भगवान मुरुगन की सोने की 140 फीट ऊंची भव्य प्रतिमा है जो विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमाओं में एक है। भगवान मुरुगन भगवान कार्तिकेय के रूप हैं जो हिन्दू तमिलों के लोकप्रिय देवता हैं।दक्षिण भारत के साथ ही श्रीलंका, मलेशिया और सिंगापुर सहित विदेश में जहां भी तमिल हिन्दू हैं,भगवान मुरुगन की पूजा होती है।मुरुगन भगवान शिव और माता पार्वती के बड़े पुत्र हैं ।
● मलेशिया के बाटू गुफा मंदिर परिसर में उत्साह के साथ मना थाईपुसम त्योहार
कुआलालंपुर(मलेशिया) में तमिल हिंदुओं ने उत्साह के साथ थाईपुसम त्योहार मनाया।भगवान मुरुगन के भक्तों के लिए थाईपुसम साल का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है।भगवान मुरुगन भगवान कार्तिकेय के रूप हैं।थाईपुसम त्योहार दक्षिण भारत के साथ ही मलेशिया, श्रीलंका,थाईलैंड सहित उन सभी देशों में मनाया जाता है जहां तमिल हिन्दू रहते हैं।इस वर्ष थाईपुसम 25 जनवरी को मनाया गया पर मलेशिया के कुआलालंपुर में बाटू गुफा मंदिर परिसर में कई दिनों पहले से उत्सव का माहौल दिखा। बाटू गुफा मंदिर परिसर में 1892 से थाई पुसम त्योहार मनाया जाता है।भगवान मुरुगन के लाखों भक्त कई दिनों से यहां जुट रहे थे। ढोल-नगाड़ों के साथ नाचते-गाते हुए शोभा यात्रा के रूप में श्रद्धालुओं को बाटू गुफा मंदिर में बढ़ते हुए देखा गया।गुफा मंदिर परिसर में भगवान मुरुगन की विशाल प्रतिमा है।चूना पत्थर की पहाड़ी पर स्थित गुफा में भगवान के दर्शन के लिए 272 सतरंगी सीढ़ियां चढ़नी होती है।अच्छी संख्या में श्रद्धालुओं को अलग-अलग ग्रुप आकर्षक और भारी-भरकम कांवर के साथ नगाड़ों की गूंज पर मंदिर परिसर में नाचते-गाते बढ़ते देखा गया।
● मां पार्वती ने दैत्यों से लड़ने के लिए भगवान मुरुगन को दिया था अस्त्र
थाईपुसम के दिन ही भगवान मुरुगन की मां देवी पार्वती ने उन्हें दैत्यों से लड़ने के लिए शक्तिशाली शूल दिया था।थाईपुसम त्योहार उस दिन को याद करने के लिए मनाया जाता है। मान्यता है कि भगवान मुरुगन ने मां पार्वती से मिले अस्त्र शूल(भाला) से ही राक्षसों का संहार किया था। थाईपुसम के अवसर पर भगवान मुरुगन को खुश करने के लिए भक्त कील और कांटे से अपनी त्वचा में छेद कराते हैं। वे अपना शरीर सैकड़ों खूंटियों से छेदते हैं।48 दिनों तक उपवास और पूजा-पाठ करते हैं।कुछ श्रद्धालु अपने माथे पर दूध का बर्तन लेकर चलते हैं। कुछ लोग अपना या अपने बच्चों का सिर मुंडवाते हैं।
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